छत्तीसगढ़ राज्य सौर नीति 2017 - 2027

पर्यावरण संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन के प्रति बढ़ रही वैश्विक जागरूकता के परिदृष्य में कोयला आधारित पारंपरिक स्रोतों पर राज्य की निर्भरता को कम करने और अपरम्परागत ऊर्जा स्रोतों का उपयोग आवश्यक हो गया है। अपरम्परागत ऊर्जा स्रोतों में सौर ऊर्जा महत्वपूर्ण स्थान रखता है। पर्यावरण संरक्षण में सामंजस्य रखते हुए भविष्य में जीवाश्म आधारित ईंधन (Fossil Fuel) के आयात पर निर्भरता को सुनियोजित तरिके से समाप्त करने तथा बिजली की मांग आपूर्ति के अंतर को दूर करने के लिए निर्णायक रणनीतियों (Crucial Strategy) के तहत में गैर परम्परागत ऊर्जा के स्रोतों के उपयोग को बढ़वा देना आवश्यक हो गया है ।

सौर ऊर्जा जो ऊर्जा का महत्वपूर्ण स्रोत है, का वर्तमान में उपलब्ध क्षमता अनुरूप उपयोग नहीं हो पा रहा है। नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 2014 में जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय सोलर मिशन की घोषणा करते हुए भारत में प्रत्येक वर्ष के औसतन 300 धुप वाले दिनों में प्रतिदिन 5.5 किलोवाट प्रति वर्गमीटर की औसत दर से सौर विकिरण का उपयोग देश आवश्यकता की पूर्ति करने के लिए पहल की गयी है ।

छत्तीसगढ़ में अपारम्परिक ऊर्जा स्त्रोतों पर आधारित विद्युत उत्पादन संयंत्रों को प्रोत्साहन हेतु विभिन्न सुविधाएं देने के लिये विस्तृत दिशा‐निर्देश:‐ अपारंपरिक ऊर्जा स्त्रोतों के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य सरकार की अधिसूचना क्रमांक 2637/स./उ.वि./2001 दिनांक 31 अक्टूबर 2001 द्वारा घोषित ऊर्जा नीति की अपेक्षा अनुसार अपादंपरिक ऊर्ता स्त्रोतों से विद्युत उत्पादन के संबंध में राज्य शासन एतद्‌ द्वारा निम्नानुसार विस्तृत दिशा निर्देश जारी करता है।

राज्य शासन एतद द्वारा छत्तीसगढ़ राज्य में 25 मेगावाट क्षमता तक की छोटी एवं लघु जल विद्युत परियोजनाओं की स्थापना हेतु निवेश को प्रोत्साहन देने के लिए नीति निर्देश एवं पारदर्शी आबंटन की प्रक्रिया हेतु राज्य सरकार की अधिसूचना क्रमांक 253 ल/. वि. उ/. वि. 2012 रायपुर, दिनांक 23 फरवरी 2012 द्वारा निम्नानुसार दिशा निर्देश जारी करती है।

छत्तीसगढ़ में अपारम्परिक ऊर्जा स़्त्रोंतों से विद्युत उत्पादन को प्रोत्साहित करने हेतु वर्ष 2002 में जारी नीति के अनुक्रम में छत्तीसगढ़ शासन प्रदेश में पवन ऊर्जा के विकास हेतु राज्य सरकार की अधिसूचना क्रमांक 1905/प्र.ऊ./उ.वि./2006 रायपुर दिनांक 07 अगस्त 2006 द्वारा निम्नानुसार नीति जारी करता है।

राष्ट्रीय जैव ऊर्जा कार्यक्रम (NBEP) अंतर्गत बायोगैस कार्यक्रम

उद्देश्यः- राष्ट्रीय जैव ऊर्जा कार्यक्रम (NBEP) अंतर्गत बायोगैस कार्यक्रम नवीन ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) भारत सरकार, नई दिल्ली द्वारा चलाया जा रहा एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में परिवार मूलक बायोगैस संयंत्रों का निर्माण किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य कृषकों को स्वच्छ एवं सुरक्षित ईंधन के साथ उच्च गुणवत्तायुक्त जैविक खाद उपलब्ध कराना है।।

  • योजना का कार्यक्षेत्र:‐ परियोजना का क्रियान्वयन संपूर्ण छ.ग. में किया जा रहा है।
  • पात्रता:‐ जिन हितग्राहियों के पास न्यूनतम 4‐6 मवेशी है, वे पात्र होंगें ।
  • हितग्राही चयन:‐ हितग्राहियों का चयन क्रेडा एवं कृषि विभाग के माध्यम से निर्धारित आवेदन पत्र द्वारा किया जाता है । प्रति हितग्राही प्रोसेसिंग शुल्क राशि रू. 900/‐ निर्धारित है ।

संयंत्र निर्माण की संक्षिप्त विधि:‐
  • संयंत्र का निर्माण क्रेडा द्वारा प्रशिक्षित मेसन एवं एम.एन.आर.ई. द्वारा निर्धारित मापदंड के अनुसार किया जाता है। संयंत्र का निर्माण कार्य हितग्राहियों द्वारा देय कुल अनुदान के विरूद्ध स्वयं हितग्राही द्वारा सिविल मटेरियल का क्रय कर तथा मेसन से समन्वय कर किया जाता है एवं संयंत्र निर्माण पश्चात् हितग्राहियों के अनुशंसा से सिविल मटेरियल तथा मेसन का भुगतान क्रेडा द्वारा उनको देय अनुदान में से संबंधितों को किया जाता है।
  • संयंत्र की कार्यशीलता सुनिश्चित करने हेतु क्रेडा द्वारा MNRE के मापदंड अनुसार बायोगैस बर्नर पेंट पाईप गेटवाल्व इत्यादि का प्रदाय हितग्राहियों को किया जाता है।
  • उपरोक्त समस्त सामाग्रियों के प्रदाय/भुगतान के उपरांत यदि अनुदान राशि शेष बचती है तो उसे हितग्राही के खाते में आरटीजीएस/एनईएफटी के माध्यम से विमुक्त कर दिया जाता है।

लाभ:‐
घरेलू बायोगैस संयंत्र की स्थापना कर ग्रामीण/वन क्षेत्र के कृषकों को ईंधन के लिये आत्मनिर्भर बनाना तथा जैविक खाद को बढ़ावा देना है, संयंत्र के उपयोग से लकड़ी की बचत होती है जिससे वनों पर दबाव भी कम पड़ता है। 02 घनमीटर क्षमता के एक बायोगैस संयंत्र के उपयोग से माह में 1.5 सिलेंडर एलपीजी के बराबर बायोगैस बनती है तथा माह में 750 कि.ग्रा. अच्छे गुणवत्ता युक्त खाद मिलती है। इस प्रकार एक वर्ष में 18 सिलेंडर एलपीजी के बराबर बायोगैस तथा 9000 कि.ग्रा. जैविक खाद की प्राप्ति होती है। जिससे गैस पर 1100 प्रति सिलेंडर की दर से अनुमानित राशि रू. 19800 एवं जैविक खाद पर 6 रूपए प्रति कि.ग्रा. की दर से लगभग राशि रू. 54,000/- की वार्षिक बचत होती है। यह कृषकों की आय में वृद्धि करने वाली योजना है।

वर्ष 2022-23 तक प्रदेश में 60038 नग घरेलू बायोगैस संयंत्रों की स्थापना का कार्य किया गया है।

The objectives of all Sub-Contract activities in CREDA are to ensure that:‐

  • The required work/ materials/ services at prescribed specifications are outsourced from reliable vendors/ system Integrators, in the right quantities, at the right times and at right prices.
  • Fair, transparent and consistent practices are followed in sub-contracting with a view to establishing long-term reliable business relationships with the vendors for timely execution of projects.
  • The total 'execution time' for commissioning of systems is reduced to the minimum.

These Regulations may be called the Chhattisgarh State Electricity Regulatory Commission (Grid Interactive Distributed Renewable Energy Sources) Regulations, 2019

These Regulations may be called the Chhattisgarh State Electricity Regulatory Commission (Grid Interactive Distributed Renewable Energy Sources) (First Amendment), 2021